नई सुबह के रखवाले हम कहां कहां से आए |
लिए भावना कर्म की मन में, ज्ञान की लगन लगाए |
पूरब में है खड़ी पहाड़ी,
पश्चिम में सागर लहराता,
उत्तर दक्षिण में कुदरत का -
कितना रूप सुहाना भाता !
आसमान जैसे धरती को, बार-बार दोहराए !
कितना प्यारा है विद्यालय,
फूलों की पहली फुलवारी ||
और यहीं से हमको करनी -
अपने जीवन की तैयारी ||
अब इतनी मेहनत करनी है, मुश्किल भी घबराए !
यह पहला मैदान सिखाता
जीवन को मैदान बनाना
हार -जीत से ऊपर उठकर -
अपने को इंसान बनाना ||
आपस में मिलकर रहना है, देश की शान बढ़ाए !
इतने सुंदर कर्मों का
ध्यान ही सच्ची भक्ति है |
सदा रहेगा मंत्र हमारा -
ज्ञान ही सच्ची सकती है ||
अपनी मंजिल पर चलना है, धर्म की ज्योत जलाए !